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Ram Katha By Morari Bapu - Vigodhi Vol. 3 Pt 3

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तुलसीदास जी वन्दना करे श्री सिताराम। एमा पण उपनिशत नो निर्वा मात्रु देवो भव, पछी पित्रु देवो भव, अन्तेथी जगजणनी सिताजी नी प्रथम वन्दना तुलसीदास।
अतिसहे पिय कर्नाई लावती, ताके जुगपद कमल मनावाओ।
जासू तुपार, दियर मण मरंथी पाल।
जासू तुपार, दियर मण मरंथी पाल।
जासू तुपार, दियर मण मरंथी पाल।
जासू तुपार, दियर मण मरंथी पाल।
पुलिमान बाचन करम रभुमाल।
पुलिमान बाचन करम रभुमाल।
पुलिमान बाचन करम रभुमाल।
पुलिमान बाचन करम रभुमाल।
पुलिमान बाचन करम रभुमाल।
पुलिमान बाचन करम रभुमाल।
जनक जनक सिता जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जन
जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक
प्रत्म् मानी वंदना करी ने दिरेधिले निर्मल् मती द्वारा प्रभूत रख जवानी आती है कोई पण वस्तु प्राप्त करी होई तो पिताः करता माँ द्वारा जलदी में तो बाप्नो परिचयर्य मा द्वारा थाता होये।
लोकिक और अलोकिक बन्ने सिद्धान सावित्ता है।
कि माझ पितानों परिचय पुत्रने करावी शके,
एम अलोकिक सबंधमा पण शक्ति द्वाराज परमात्मानों परिचय थाई शके।
माटे प्रथम जगदंबा सीताजीने बंधना आ रही था।
आ शत्रुखण्नावा में चिथ्ठी लाखी, अ भरत जी नामे चिथ्ठी लाखी,
प्रभुने आ जोम कैनी टुलसी पतानों भा�해서 गेँत काृळेची।
कब हु कांव अवसर पाला।
ए माझ, क्यारेएक अवसर जोहिनै मारी करूण कथा प्रभूने गहजौं。
एक अनास तमने याद करे हैं एनी चिठ्ठी वाचीने एने अपनाओ
अब मा द्वारा पिता पासे पोचवानो एक तुलसी जिनो आप प्रयास
तेथी प्रथम चर्जननी श्री सिताजी नी वंदना करी
अने हवे मन वचन ने करमती बगवान राम नी वंदना करता तुलसी लगे
उपना, सावना, मान ते कृष्ण, स्वव, मन, आवा, बाल, घुण,लवाण,व्हू
ममें झ मालाइक गहोक व्प भगवान चरण विचारी नी वंदना
पै बहुँ सुनदर शब्द तुलसी जि मुले शलायक
भगवान चालीर सबाले में लयंगा
जिवन मा कोई निराश न रहे, जिवन मा कोई उदाश न रहे, तले तुलसीधास चिनुासु
परमात्मान चरणारविंद बदा माठे लाय हैं, कोई यमन मानी बया जेक
अमाराती शुण थाय, अमे शुण करी शक्ये, अमे आटली भूलो करी, अमे आम, अमे आम, नाई
केवट ने मल्या, दरेक ने लायक, बद्धा माटे प्रभुना चरणारविंद लायक चे, तान तेथी अपने गई काले सुत्र ना रूप मा जोयू, के प्रेम करवा जेवू तत्व एक परमात्मा चे, सेवा बद्धानी का, सामाज मा जेजे सामे आवे, युग्यता प्रमान
पुरुषोए, ए चरण नी मांगने कर चे, ए चरण मा पतानो विश्वास मुकिल चे, इतला माटे प्रभुनु नाम पतित पावच, चरण गमल बंदव समलाये, पछी प्रभुनी आगल बंदना करता लगी, पहला चरण नी बंदना करी, तुरंत द्रश्टी उपर गई, �
राजीव नयन धरे धनु सायक, भगत विपती धन्जन सुखार।
राजीव नयन धन्जन सुखार।
राजीव नयन धन्जन सुखार।
राजीव नयन धन्जन सुखार।
अतिसहे पिय कर्नाई लावती, ताके जुगपद कमल मनावाओ।
जासू तुपार, दियर मण मरंथी पाल।
जासू तुपार, दियर मण मरंथी पाल।
जासू तुपार, दियर मण मरंथी पाल।
जासू तुपार, दियर मण मरंथी पाल।
पुलिमान बाचन करम रभुमाल।
पुलिमान बाचन करम रभुमाल।
पुलिमान बाचन करम रभुमाल।
पुलिमान बाचन करम रभुमाल।
पुलिमान बाचन करम रभुमाल।
पुलिमान बाचन करम रभुमाल।
जनक जनक सिता जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जन
जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक जनक
प्रत्म् मानी वंदना करी ने दिरेधिले निर्मल् मती द्वारा प्रभूत रख जवानी आती है कोई पण वस्तु प्राप्त करी होई तो पिताः करता माँ द्वारा जलदी में तो बाप्नो परिचयर्य मा द्वारा थाता होये।
लोकिक और अलोकिक बन्ने सिद्धान सावित्ता है।
कि माझ पितानों परिचय पुत्रने करावी शके,
एम अलोकिक सबंधमा पण शक्ति द्वाराज परमात्मानों परिचय थाई शके।
माटे प्रथम जगदंबा सीताजीने बंधना आ रही था।
आ शत्रुखण्नावा में चिथ्ठी लाखी, अ भरत जी नामे चिथ्ठी लाखी,
प्रभुने आ जोम कैनी टुलसी पतानों भा�해서 गेँत काृळेची।
कब हु कांव अवसर पाला।
ए माझ, क्यारेएक अवसर जोहिनै मारी करूण कथा प्रभूने गहजौं。
एक अनास तमने याद करे हैं एनी चिठ्ठी वाचीने एने अपनाओ
अब मा द्वारा पिता पासे पोचवानो एक तुलसी जिनो आप प्रयास
तेथी प्रथम चर्जननी श्री सिताजी नी वंदना करी
अने हवे मन वचन ने करमती बगवान राम नी वंदना करता तुलसी लगे
उपना, सावना, मान ते कृष्ण, स्वव, मन, आवा, बाल, घुण,लवाण,व्हू
ममें झ मालाइक गहोक व्प भगवान चरण विचारी नी वंदना
पै बहुँ सुनदर शब्द तुलसी जि मुले शलायक
भगवान चालीर सबाले में लयंगा
जिवन मा कोई निराश न रहे, जिवन मा कोई उदाश न रहे, तले तुलसीधास चिनुासु
परमात्मान चरणारविंद बदा माठे लाय हैं, कोई यमन मानी बया जेक
अमाराती शुण थाय, अमे शुण करी शक्ये, अमे आटली भूलो करी, अमे आम, अमे आम, नाई
केवट ने मल्या, दरेक ने लायक, बद्धा माटे प्रभुना चरणारविंद लायक चे, तान तेथी अपने गई काले सुत्र ना रूप मा जोयू, के प्रेम करवा जेवू तत्व एक परमात्मा चे, सेवा बद्धानी का, सामाज मा जेजे सामे आवे, युग्यता प्रमान
पुरुषोए, ए चरण नी मांगने कर चे, ए चरण मा पतानो विश्वास मुकिल चे, इतला माटे प्रभुनु नाम पतित पावच, चरण गमल बंदव समलाये, पछी प्रभुनी आगल बंदना करता लगी, पहला चरण नी बंदना करी, तुरंत द्रश्टी उपर गई, �
राजीव नयन धरे धनु सायक, भगत विपती धन्जन सुखार।
राजीव नयन धन्जन सुखार।
राजीव नयन धन्जन सुखार।
राजीव नयन धन्जन सुखार।
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